BA Semester-1 Hindi Kavya - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2639
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"

अथवा
'प्रसाद' जी छायावादी कवि हैं। छायावाद के सभी लक्षण उनकी कविता में विद्यमान हैं। समीक्षा कीजिए।

उत्तर -

प्रस्तावना महानतम काव्य-ग्रन्थों के प्रणेता प्रसाद जी से हिन्दी काव्य जगत को अनेक अमर काव्य-कृतियाँ प्राप्त हुई। उनमें उल्लेखनीय 'प्रेम-पथिक', 'महाराणा का महत्व', 'कानन कुसुम', 'लहर', 'आँसू' और 'कामायनी' है। 'आँसू' मुक्तक विरह काव्य की सच्ची अनुभूति की कारुणिक गाथा है। 'कामायनी' महाकाव्य हिन्दी जगत की अमूल्य धरोहर है।

भाव पक्षीय विशेषतायें

प्रसाद के काव्य में भाव पक्षीय विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) प्रकृति-चित्रण - मानवीय सौन्दर्य के चित्रण के साथ ही साथ प्रसाद प्रकृति - सौन्दर्य के चित्रण में भी कुशल हैं। 'लहर' में सूर्योदय का एक सुन्दर चित्र इस प्रकार है -

अन्तरिक्ष में अभी सो रही है ऊषा मधुबाला।
अरे खुली भी नहीं अभी तो प्राची की मधुशाला।

प्रकृति का मानवीकरण इन पंक्तियों में दृष्टव्य है -

बीती विभावरी जाग री।
अम्बर पनघट में डुबो रही तारा-घट ऊषा नागरी।
तू अब तक सोई है आली आँखों में भरे विहाग री।

(2) सौन्दर्य निरूपण - सौन्दर्यानुभूति प्रसाद के काव्य की प्रमुख विशेषता है। उनके 'लहर', 'आँसू' और 'कामायनी' आदि काव्य ग्रन्थों में सौन्दर्य के अभिनव चित्र प्राप्त होते हैं। प्रसाद जी मानव- सौन्दर्य के बहुत बड़े प्रशंसक हैं। कामायनी में मनु और श्रद्धा के सौन्दर्य का वर्णन अनेक स्थानों पर बड़ा ही आकर्षक बन पड़ा है। मनु के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए वे कहते हैं -

उठे स्वस्थ मनु ज्यों उठता है, क्षितिज बीच अरुणोदय कान्त।
लगे देखने लुब्ध नयन से प्रकृति विभूति मनोहर शान्त।

प्रसाद जी ने 'श्रद्धा' के रूप का वर्णन मनु के शब्दों में इस प्रकार किया है

और वह मुख पश्चिम के व्योम, बीच जब घिरते हों घनश्याम।
अरुण रवि मण्डल उनको भेद दिखाई देता हो छवि धाम।

डॉ. गुलाब राय के अनुसार प्रसाद जी ने सौन्दर्य के भौतिक आकर्षण की अवहेलना नहीं की है। यह एक वैज्ञानिक सत्य है। इसको स्वीकारते हुए भी वे इसे नीचे की ओर नहीं ले गये हैं। इसका स्वर्गीय आनन्द चित्रण करते हुए उन्होंने इसको ऐन्द्रिकता के भार से ऐसा ग्रसित नहीं किया है कि उसकी प्रातः समीकरण की सी परिमलय सुखद स्वच्छता सूक्ष्मता और तरलता में बाधा पड़े। इसका प्रभाव जीवन पर मन्द और मधुर होता है। वह कभी झंझावत और बवण्डर के रूप में नहीं आता है।

(3) मानवतावादी दृष्टिकोण - प्रसाद ने काव्य में मानवतावादी विचार की विजय दिखाई है। प्रसाद 'जियो और जीने दो' (Live and Let live ) के सिद्धान्त को मानने वाले हैं। उन्होंने लिखा है -

क्यों इतना आतंक ठहर जा, ओ गर्वीले।
जीने दे सबको फिर तू भी सुख से जी ले।

इस उद्देश्य को आज कल के पश्चिमी राष्ट्र अपना सकें, तो मानव समाज का कितना कल्याण हो। डॉ. रामेश्वर दयाल खण्डेलवाल ने 'जयशंकर प्रसाद वस्तु और कला' में लिखा है कि प्रसाद जी का चिन्तन हवाई नहीं है, गम्भीर मनन से प्रारम्भ उनके विचारों के सुन्दर चित्रण विराट काल-फलक पर फैली उनकी सुदीर्घ ऐतिहासिक दृष्टि के तट पर बने हुए हैं। अतः वे यथार्थ व व्यवहार्थ हैं। उनका चिन्तन समग्र मानव जीवन, मानव की सहज शारीरिक-मानसिक क्षमता और मानव की मूल आदर्श प्रियता - तीनों के सामंजस्य से तैयार हुआ है। फिर इस चिन्तन को उन्होंने अधिकांशतः साहित्य या कला की माँग के अनुसार भव व रस में परिणत कर एक स्वस्थ तृप्तिकार संजीवनी के रूप में प्रस्तुत किया है।

इस विचार का कुछ अंश राष्ट्रीय महत्व का और कुछ सार्वभौमिक व सार्वकालिक महत्व का है। मानव जीवन के सब क्षेत्रों पर समान दृष्टि रखकर मानव सुख के लिए प्रसाद ने जो चिन्तन किया है, वह उनके साहित्य की एक महत्वपूर्ण विभूति है।

(4) छायावाद के अधिष्ठाता - द्विवेदी युग की इति वृतात्मकता की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप जिस छायावादी शैली का जन्म हुआ, उसके प्रवर्तक प्रसाद ही थे। उनकी कविताएँ छायावाद के साँचे में ढली है। 'आँसू' छायावादी काव्य की सुन्दरतम कृति है। छायावाद की प्रथम विशेषता है सौन्दर्य दर्शन। छायावादी कवि सौन्दर्य का प्रेमी होता है। उसे विश्व की प्रत्येक वस्तु में असीम सौन्दर्य के दर्शन होते हैं। ''आँसू' में भी कवि की यह भावना दिख पड़ती है तुम सत्य रहे चिर सुन्दर मेरे इस मिथ्या जग के।
प्रसाद जी ने प्रिय के सौन्दर्य का चित्रण बडी तल्लीनता के साथ किया है। जैसे  -

लावण्य-शैल राई -सा, जिस पर वारी बलिहारी।
उस कमनीयता कला की, सुषमा थी प्यारी-प्यारी।

छायावादी काव्य की दूसरी विशेषता है- श्रृंगारिकाता 'आँसू' में इसका अभाव नहीं है। यह शृंगारं का ही काव्य है। छायावादी काव्य में वेदना की व्यंजना हुआ करती है। 'आँसू' प्रसाद जी का वेदना प्रधान- काव्य है। छायावादी काव्य में आध्यात्मिकता की व्यंजना भी हुआ करती है। ईश्वर की असीम सत्ता में विश्वास करना छायावादी कवि की प्रथम विशेषता है। छायावादी कवि नारी की महत्ता का प्रतिपादन करता है। प्रसाद जी ने 'कामायनी' में श्रद्धा के महत्व की प्रतिष्ठा की है। 'आँसू' में भी उन्होंने नारी के गौरवमय उज्ञ्जक्ल पक्ष को व्यंजित किया है। कवि को प्रेयसी के आलोक से सारा संसार प्रकाशमान लगता है।

(5) नियतिवाद - डॉ. द्वारिका प्रसाद सक्सेना के अनुसार "प्रसाद का यह दृढ़ विश्वास है कि (5)-ि जीव के समस्त कार्यों की गति-विधि का संचालन एक ऐसी नियामिका शक्ति करती है, जो कर्त्तव्य मद से . मत्त जीवों की कर्मशक्ति को अपनी अनुचरी बनाकर अपना कार्य कराती हैं, दम्भ एवं अहंकार से पूर्ण जीवों को अपनी क्रीड़ा का कंदुक बनाती है, कृत्रिम स्वार्थ सिद्धि में रुकावट उत्पन्न करती है, और जीवों के उत्थान का पतन एवं पतन का उत्थान किया करती है। इस नियमिका शक्ति को 'निर्यात' नाम से अभिहित किया जाता है।'

(6) पुरुषार्थवाद - प्रसाद जी ने नियतिवादी होते हुए भी जीव के भौतिक अभ्युदय एवं आध्यात्मिक विकास के लिए पुरुषार्थ की महत्ता का निरूपण किया है। प्रसाद का स्पष्ट मत है कि जीव अपने पुरुषार्थ से ही महान बनता है। अनेक महान व्यक्ति निंदनीय सामाजिकता की भूमि पर उत्पन्न होकर भी पुरुषार्थ के बल पर ही दैवी भाग्य विधान एवं रूढ़ियों को बदलने में समर्थ हुए हैं। पुरुषार्थ से ही जीव अपने कलंक को मिटा सकता है, पाप को पुण्य में बदल सकता है तथा आनन्द का सर्वत्र प्रसार कर सकता है, क्योंकि पुरुषार्थी के सामने से सम्पूर्ण विघ्न दूर हो जाते हैं, जीव का आलस्य एवं उसकी अकर्मण्यता नष्ट हो जाती है और वह निर्भयतापूर्वक कर्म करता है।

(7) नारी की महत्ता - प्रसाद से पूर्व रीति काल में नारी के प्रति हीन और संकुचित दृष्टिकोण था। प्रसाद जी ने अपने काव्य में नारी को महत्ता प्रदान की और उसे श्रद्धा की साक्षात् प्रतिमा कहा। प्रसाद के अमर महाकाव्य 'कामायनी' की नायिका 'श्रद्धा' भी इसी कोटि की नारी है। श्रद्धा अगाध विश्वास, त्याग, सौन्दर्य एवं विश्वबन्धुत्व की मूर्तिमान प्रतीक है। वास्तव में 'श्रद्धा' के रूप में प्रसाद ने अपने नारी विषयक दृष्टिकोण को विशद रूप में अंकित किया है -

नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में।
पीयूष स्रोत-सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में।

(8) नारी का अमांसल सौन्दर्य-वर्णन - कामायनी में श्रद्धा को देखकर मनु के मन में जो प्रतिक्रिया हुई, वह शारीरिक उपभोग की इतनी नहीं, जितनी उसके दर्शन से उत्पन्न मानसिक कौतूहल तथा तृप्ति से समन्वित थी। इसमें सौन्दर्य के प्रति शारीरिक उपभोग का भाव न होकर मानसिक परितोष का भाव ही अधिक है। प्रसाद जी के श्रृंगार और प्रेम के चित्र लौकिकता की पवित्र भूमि से दूर दिव्यता की पावनता से युक्त होते हैं।

(6) रहस्यवादी भावना - प्रसाद जी के काव्य में रहस्यवाद की सफल अनुभूति के दर्शन होते हैं। प्रसाद जी का ईश्वरोन्मुख प्रेम प्रकृति के प्रेम के साथ मिलकर रहस्यवाद का रूप धारण कर लेता है। परमात्मा की सत्ता उनकी प्रकृति के मनोरम दृश्यों में मिलती है, कहीं तो कौतूहल जागृत कर एक खोज का विषय मात्र रह जाता है और कहीं उसमें उनके प्रियतम पहचाने से, किन्तु कुछ लुके-छिपे से दिखाई पड़ते हैं। जैसे -
तृण वीरुध लहलहे हो रहे, किसके रस में सिंचे हुए। सिर नीचा कर किसकी सत्ता, करते हैं स्वीकार यहाँ। सदा मौन हो प्रवचन करते, जिसका वह अस्तित्व यहाँ?
हे अनन्त रमणीय ! कौन तुम, यह मैं कैसे कह सकता?
(10) रस योजना - प्रसाद जी की रचनाओं में रस परिपाक का गौण स्थान है। भावों तथा कल्पनाओं के बुद्धिगम्य न होने के कारण रस-परिपाक में बाधा पड़ी है। फिर भी रस परिपाक की दृष्टि से प्रसाद के काव्य में शृंगार, शान्त तथा करुण रस की प्रधानता है।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने प्रसाद जी पर आक्षेप करते हुए आँसू के विषय में लिखा है "कहने का तात्पर्य यह है कि वेदना की कोई एक निर्दिष्ट भूमि न होने से सारी पुस्तक (आँसू ) का कोई एक समन्वित प्रभाव निष्पन्न नहीं होता। इस विषय में ध्यान देने की बात यह है कि आँसू एक स्मृति काव्य है। कवि प्रसाद ने इसमें अपने अतीत जीवन की स्मृतियों की एक दर्द भरी अभिव्यक्ति की है। इस आधार पर आँसू की भाव-भूमि को स्थायी नहीं, विकासशील कहा जा सकता है। आँसू में कवि प्रसाद का अतीत के साथ वर्तमान भी संयुक्त है। यही कारण है कि कवि आँसू के अन्त तक आते-आते निराशा और अवसाद से ऊपर उठकर अपनी वेदना को करुणा अर्थात् विश्व-प्रेम के रूप में परिवर्तित कर देता है। इसका कारण काव्य का निराशावादी न होना है। इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रसाद ने अपनी कविताओं में छायावादी काव्य के सभी तत्वों का समावेश किया है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
  3. प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  4. प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  5. प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
  6. प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  7. प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
  9. प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
  10. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  13. प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
  14. प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
  18. प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
  19. प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
  20. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  21. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  24. प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  25. प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
  26. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
  27. प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  28. प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  29. प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
  30. प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  33. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  35. प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
  36. प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  37. प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
  38. प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
  40. प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
  41. प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  44. प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
  45. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
  47. प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
  48. प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  49. अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
  50. प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  51. प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  53. प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
  54. प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
  55. प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
  56. अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
  57. प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
  58. प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
  59. अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
  60. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  63. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  64. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  65. अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
  66. प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  68. प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
  69. प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
  70. प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
  71. प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
  72. अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
  73. प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  75. प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
  76. प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  77. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
  81. प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
  82. अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
  83. प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  84. प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
  86. प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
  87. प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  89. अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  92. प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
  93. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  94. अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
  95. प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
  96. प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
  97. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
  99. अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
  100. प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  102. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
  104. प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
  105. अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
  106. प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
  107. प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  108. प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
  109. प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
  110. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  111. अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  112. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
  113. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  114. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
  115. प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
  116. अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
  117. प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
  118. प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
  119. अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
  120. प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
  121. प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  122. अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
  123. प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
  124. प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
  125. प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
  126. प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
  128. अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  129. प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  130. प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
  131. प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
  132. प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
  133. प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
  134. अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
  135. प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
  136. प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
  137. प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
  138. अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  140. प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  141. अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
  142. प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
  143. प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  144. प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
  145. अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
  146. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  147. प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
  148. प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
  149. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  150. प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
  151. अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
  152. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  153. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
  154. अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
  155. प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  156. प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
  157. प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।

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